is devotion only for sentimentalists ?


*क्या भक्ति मार्ग केवल भावुक लोगों के लिए ही है?*

भक्ति मार्ग तो सभी के लिए है, इस मार्ग में सभी अायु, सभी स्तर के लोग खुशी – खुशी भाग लेकर सफलता पूर्वक भगवान् तक पहुँच सकते हैं।
हाँ यह बात सत्य है कि भक्ति के मार्ग में भावनाअों की बहुत अावश्यता होती है लेकिन यह कहना ठीक नहीं होगा कि यह केवल भावुक लोगों के लिए है।

भक्ति मार्ग तो भगवान् की कृपा को अपने जीवन में अाकर्षित करने की पद्धति है, अौर वह किसी से भी की जा सकती है चाहे वह पाँच साल का छोटा बालक हो या कोई वैज्ञानिक या कोई गृहणी अौर या कोई योद्धा।

भक्ति मार्ग में हमें हमारी क्षमताअों के अनुसार भगवान् की सेवा हमारी प्रेमभरी भावनाअों के साथ करनी होती है, उसमें भौतिक क्षमताअों या योग्यताएँ बीच में नहीं अाती। जब भगवान् राम लंका पहुँचने के लिए समुद्र पर पुल के निर्माण को निर्देशित कर रहे थे उस समय हनुमानजी बड़े – बड़े पत्थर ला रहे थे अौर एक छोटी सी गिलहरी छोटे – छोटे कंकड़ द्वारा अपना योगदान बड़ी ही कृतज्ञता अौर प्रेम से कर रही थी। भगवान् दोनों की सेवाअों से समान रूप से ही प्रसन्न थे।
भक्ति योग में तो सभी कुछ अा जाता है क्योंकि भगवान् हमारे द्वारा प्रेम से दी गई किसी भी वस्तु को स्वीकार करते हैं – प्रेमभरी भावनाएँ, सरल सेवा, शारीरिक शक्ति अौर बुद्धिमत्ता इत्यादि – हमारी जो भी योग्यताएँ हैं वे सभी भगवान् की प्रसन्नता के लिए ही हैं, यही समझना भक्ति मार्ग है।

अौर एक सबसे महत्वपूर्ण बात समझने की यह है कि भगवान् के लिए भावुक होने में बुराई ही क्या है? बहुत समय से लोग यह समझते अा रहे हैं कि जो बहुत बुद्धिमान हैं जिनका अाई क्यू बहुत अच्छा है वे ही प्रगति कर पाते हैं अौर भावनाएँ प्रगति में बाधा बन जाती हैं। किन्तु अब तो वैज्ञानिक लोग भी अनेक शोध करने के उपरान्त यह समझने लगे हैं कि समाज में स्थायी रूप से सफल होने के लिए भावनाअों का होना कितना अावश्यक है। प्रेमभरी भावनाअों से भरे स्थायी एवं अर्थपूर्ण सम्बन्ध जीवन के महत्वपूर्ण निर्णय लेने में अत्यन्त सहायक होते हैं।

भक्ति मार्ग में भावनाअों के महत्व का अर्थ यह नहीं है कि जो व्यक्ति भगवान् के सामने जोर-जोर से रोता – चिल्लाता है उसने बहुत प्रगति कर ली है। यह जानना बहुत ही महत्वपूर्ण है कि अाध्यात्मिक भावनाएँ भौतिक भावनाअों की तुलना में पूर्णतया भिन्न हैं जैसे कि सोना लोहे से अौर अग्नि जल से। यदि हृदय में भगवान् के प्रति प्रेम विकसित किए बिना ही हम भावनाअों का प्रदर्शन करेंगे तो एेसा करना उस स्त्री के समान है जो सोचती है कि अस्पताल के प्रसूति विभाग में जाकर रोने – चिल्लाने से – वह बच्चा पैदा कर देगी क्योंकि उसने एेसा देखा है कि स्त्रीयाँ उस विभाग में जाती हैं, अंदर से खूब चिल्लाने की अावाजें अाती हैं अौर बाद में स्त्री एक बच्चे के साथ बाहर अाती है।
प्रसूति विभाग में जाने से पहले ही स्त्री को अपने गर्भ में अपने पति की सहायता से बच्चे को लाना होता है, धैर्य पूर्वक प्रतीक्षा करनी होती है। उसी प्रकार गुरु की कृपा से हमें कृष्ण प्रेम को अपने हृदय में प्रकट करने के लिए साधना भक्ति करनी होगी अौर उसके पश्चात् प्रेम के साथ अपनी भावनाअों को प्रकट करना होगा।

भगवान् के प्रति हमारा अाध्यात्मिक प्रेम तब ही प्रकट होता है जब हमारा मन एवं बुद्धि पूर्णतया भगवान् पर स्थिर हो जाते हैं अौर हम भौतिक भावनाअों में नहीं बहते। एेसे लोग जो शारीरिक एवं मानसिक भावनाअों को भक्तियोग की भावनाअों जैसा समझ लेते हैं वे उनके मनपसंद क्रिकेट खिलाड़ी के अाउट होने पर रोते हैं अौर श्रीकृष्ण की बाल लीलाएँ सुनने पर भी रोते हैं।
ये भावनाएँ अाध्यात्मिक नहीं हैं, अाध्यात्मिक रूप से एेसे अपरिपक्व लोगों के लिए भगवान् की लीलाअों का श्रवण भी एक प्रकार का अाध्यात्मिक मनोरंजन है। एेसे अनेक उदाहरण हैं जब यह देखने में अाता है कि जब एेसे तथाकथित भक्त भगवान् के लिए भी सार्वजनिक रूप से रोते हैं अौर बाद में अकेले में जाकर ड्रग्स इत्यादि का नशा करते हैं। इसका अर्थ है कि वे अभी भी भौतिक शक्ति के वश में हैं अौर उनकी भक्ति का भावपूर्ण प्रदर्शन मात्र एक दिखावा है।

इसलिए यह जानना अावश्यक है कि भक्ति योग में रोने-धोने या भावुक होने के अतिरिक्त अौर भी बहुत कुछ है। यदि हम श्रीकृष्ण का स्मरण एवं सेवा प्रेमपूर्वक अौर पूरी तन्मयता के साथ करेंगे तब ही हम वास्तव में भक्ति मार्ग अपना रहे हैं। अौर एेसा करने से हम भगवान् को प्रसन्न कर उनकी भावनाअों को छू पायेंगे अौर वे अपनी असीम कृपा भी हम पर बरसायेंगे ।

*हरे कृष्ण।*

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