मानव देह की महिमा

श्री राधे--( मानव देह की महिमा)
★ किसी वस्तु की महिमा पता चल जाये तो मनुष्य की उसमे प्रीति बढ जाती है-उदाहरण के लिए जैसे मान लो कहीं पारसमणि पडी हो ओर मनुष्य उसे साधारण पत्थर समझकर उसको महत्व ना दे तो उसकी पारसमणि मे प्रीति नही होगी ओर अगर कोई दुसरा व्यक्ति आकर उसे ये बोल दे की ये पत्थर नही पारसमणि है तो उस व्यक्ति की दृष्टि बदल जाती है ओर फिर वो पारसमणि के प्रति आकर्षित हो जाता है --यानि जब तक पारसमणि के विषय मे ज्ञान नही था तब तक पारसमणि के प्रति उसका आकर्षण नही था लेकिन जब पारसमणि की महिमा पता चली तो आकर्षण हो गया-- उसी प्रकार से मनुष्य ईस मानव देह को सामान्य समझकर ईसको महत्व नही देता ओर थोडा सा दूख आने पर ईस देह को खत्म करने चल पडता है-- लेकिन अगर मानव ये जान ले की ईस मानव देह की क्या महिमा है तो मनुष्य कभी भी ईसको नष्ट करने के विषय मे नही सोचेगा-- ईसलिए ईस देह की महिमा को जानना बहुत अनिवार्य है-- भागवत के प्रति श्रद्धा बढे ईसलिए पहले माहात्म सुनाया जाता है उसी प्रकार ईस देह की महिमा जानने पर मनुष्य ईस देह का फिर सदुपयोग करने लगता है-- पुज्य गुरुदेव मानव देह की महिमा को बताते हुए मानस का एक प्रसंग सुनाया करते है की मानस मे प्रसंग आता है की गरुड जी ने काकभुशुण्डि जी से प्रश्न किया की सबसे दुर्लभ शरीर कौनसा है?? तो काकभुशुण्डि जी ने कहा की--" नर तन सम नहि कवनिउ देहि,जीव चराचर याचत तेही"- अर्थात् मनुष्य तन के समान कोई दुसरा तन नही है-- चर-अचर सब जीव ईस मानव देह की याचना करते है-- आखिर क्यो?? ईसका एक कारण है की प्रत्येक जीव आनंद चाहता है ओर वो आनंद केवल भगवान की भक्ति से मिलेगा ओर भगवान की भक्ति केवल मनुष्य तन को पाकर ही की जा सकती है ईसलिए सब मनुष्य तन को चाहते है--यहां तक की देवतालोग भी ईस मानव देह को चाहते है-- नारद पुराण मे लिखा है की " दूर्लभं मानुषं जन्म प्रार्थ्यते त्रिदशैरपि"- देवतालोग भी ईस मानव देह को चाहते है-- आखिर क्यो?? देवताओ के स्वर्गलोक मे तो कल्पवृक्ष है ,,पृथ्वीलोक से भी ज्यादा अच्छे अच्छे भोग स्वर्गलोक मे है तो फिर भी देवतालोग मानव देह चाहते है --क्यो?? ईसका भी कारण है की आनंद भोगो मे नही है-- " विमुख राम सुख पाव न कोई"-- भगवान से विमुख होकर किसी को आनंद नही मिल सकता-- ईसलिए देवतालोग भी बेचारे अशांत रहते है-- ईंद्र देवता अशांत रहता है ,,स्वर्ग की सीट छीन जाने का ईंद्र देवता को डर बना रहता है -- स्वर्ग मे भी माया है ओर जब तक माया रहेगी तब तक दुख रहेगा ओर माया केवल भक्ति से दूर होगी ओर वो भक्ति केवल मनुष्य देह मे हो सकती है-- तो जरा सोचिये की जिस देह को देवतालोग भी चाहते है उसको मनुष्य थोडे से दुख आने पर नष्ट करने चल पडता है-- एसा करना बहुत बडा अपराध है-- दूख हमे बिगाडने नही बल्कि बनाने आता है-- मिट्टी को अगर आग मे नही डाला जाएगा तो वो ईंट नही बनेगी -- ईंट बनाने के लिए उसे आग मे तपाना पडेगा -- ईसलिए दुखो से हारना नही बल्कि डटकर सामना करना है ओर हंसते हुए रहना है-- भगवान राम ,कृष्ण के जीवन मे भी बहुत विपरीत परिस्थितियां आयी लेकिन भगवान हमेशा मुस्कुराते रहते थे -- अगर कोई मनुष्य पहाड को देखकर पहले से ही हार मान ले की अरे नही मै ईस पहाड पर नही चढूंगा तो वो पहाड पर कभी नही चढ पायेगा -लेकिन अगर कोई हिम्मत करे तो वो पहाड की चोटी पर पहुंच सकता है उसी प्रकार दुख आने पर उनसे डरकर हारना नही बल्कि सामना करते हुए आगे बढना है - ईसलिए ईस मनुष्य देह की बहुत महिमा है-- उत्तरकाण्ड मे लिखा है की " बडे भाग मानुष तन पावा ,सुर दुर्लभ सब ग्रंथहि गावा"-- ये मनुष्य तन बहुत बडे भाग्य से मिला है ,,सुर अर्थात् देवताओ के लिए भी ये मानव तन दुर्लभ है -- भागवत मे भी कहा गया की " दुर्लभो मानुषो देहो देहिनां क्षणभंगुर:"-- तो सब बातो का सार केवल ईतना है की प्रत्येक व्यक्ति आनंद चाहता है ओर वो आनंद तब मिलेगा जब भगवान के प्रति शरणागति होगी ---ओर शरणागति केवल मनुष्य तन पाकर हो सकती है--मनुष्य तन को व्यर्थ मे खोने वालो के लिए कठोपनिषद मे कहा गया की- " तत: सर्गेषु लोकेषु शरीरत्वाय कल्पते"-- अर्थात् अगर मनुष्य अपनी देह को व्यर्थ मे बर्बाद कर देता है या सारा जीवन संसार मे मन लगाकर रखता है तो उसे कईं कल्पो तक ये देह मिलना मुश्किल है--यानि बहूत बार 84 लाख योनि मे जीव घुमता रहेगा --उसके बाद भी कभी प्रभु कृपा करके ही ये मानव देह देंगे-- " कबहूंक करि करुणा नर देहि "-- ईसलिए ईस मानव देह को व्यर्थ मे बर्बाद नही करना है-- उत्तरकाण्ड मे आता है की " नर तन पाई विषय मन देहि ,पलटि सुधा ते सठ विष लेहि"- अर्थात् जो मनुष्य तन पाकर भी अपना मन संसार के विषयो मे लगाकर रखता है उसे अमृत नही बल्कि विष मिलता है क्योकि आनंद भोगो मे आसक्ति रखने से नही मिलता बल्कि आनंद तो भगवान के मार्ग पर चलने से मिलता है " रघुपति भक्ति बिना सुख नाहि"-- (कोई तन दुखी तो कोई मन दुखी तो कोई धन बिन रहत उदास--थोडे थोडे सब दुखी ,सुखी राम के दास-)"-
काकभुशुण्डी जी भी कहते है की " सो तनु धरि हरि भजहिं न जे नर-- होहिं विषय रत मंद मंद तर--
कांच किरिच बदले ते लेहीं-- कर ते डारि परस मनि देहीं--"- अर्थात् नर तन पाकर भी जो मनुष्य प्रभु का भजन नही करता ओर संसारिक विषयो मे आसक्त रहता है उसे कभी आनंद नही मिल सकता-- पुज्य गुरुदेव कहा करते है की ये बात अच्छी तरह जीव को समझ लेनी चाहिये की संसार का चाहे सारा सामान भी जीव को मिल जाये लेकिन फिर भी भक्ति के बिना सुख नही मिलेगा-- संसार का सुख उस सब्जी की तरह है जिस सब्जी मे नमक ना हो -- नमक के बिना सब्जी अच्छी नही लगती उसी प्रकार संसार का सुख भी भक्ति के बिना फीका है-- मनुष्य चाहे कितना भी संसार प्राप्त कर ले --लेकिन भक्ति से रहित मनुष्य हमेशा अशांत रहेगा ,दुखी रहेगा-- ईसलिए ईस मानव देह का सदुपयोग भजन करने मे करना है--क्योकि हम भगवान के अंश है ओर भगवान हमारे सब कुछ है- बोलिए राधा रानी की जय
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