माधुर्य रस भाव
Copied From : https://www.facebook.com/shree.radha.vijyate.namah/videos/1785671848350402/ माधुर्य-रस में स्वकीया परकीया भाव भगवत सम्बन्धी रसो में प्रधान पाँच रस होते है- "शांत", "दास्य", "सख्य", "वात्सल्य" और "माधुर्य". इसमें सबसे श्रेष्ठ माधुर्य भाव है . माधुर्य भाव के दो प्रकार होते है - "स्वकीया-भाव" और "परकीया-भाव". 1.स्वकीया-भाव- अपनी स्त्री के साथ विवाहित पति का जो प्रेम होता है उसे स्वकीया भाव कहते है. 2. परकीया-भाव - किसी अन्य स्त्री के साथ जो परपुरुष का प्रेम सम्बन्ध होता है उसे परकीया भाव कहते है. लौकिक (सांसारिक प्रेम ) में इन्द्रिय सुख की प्रधानता होने के कारण परकीया-भाव, पाप है, घृणित है. अतः सर्वथा त्याज्य है.क्योकि लौकिक परकीया भाव में अंग-संग की घृणित कामना है. परन्तु भागवत प्रेम के दिव्य कान्तभाव में, परकीयाभाव स्वकीया-भाव से कही श्रेष्ठ है. क्योकि इसमें अंग-संग या इन्दिय सुख की कोई आकांक्षा नहीं है. स्वकीया में, पतिव्रता पत्नी अपना नाम, गोत्र, मन, प्राण, धन, धर्म, लोक, परलोक, सभी कुछ...
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